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Monday 18 February 2013

काशी महानगर महानगर में 30 हजार युवाओं ने किया सूर्यनमस्कार

वाराणसी, 12 जनवरी। स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती आयोजन समिति के तत्वाधान में रथ सप्तमी पर आज सुबह हजारों युवाओ ने सूर्यनमस्कार कर स्वामी विवेकानन्द को याद किया। इस कार्यक्रम में काशी महानगर एवं वाराणसी जिले के लगभग 70 स्कूलों के करीब 30 हजार विद्यार्थियों ने सूर्यनमस्कार किया। उल्लेखनीय है कि सारे देश में सोमवार को लगभग 80 हजार स्थानों पर सामूहिक सूर्य नमस्कार किया गया। इसमें करीब 2 करोड़ छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। इसके अतिरिक्त सैकड़ों स्कूलों में भी सामूहिक सूर्य नमस्कार का कार्यक्रम आयोजित किया गया। स्वामी विवेकानन्द सार्धशती आयोजन समिति (काशी महानगर दक्षिण) के संयोजक अधिवक्ता राजेश रंजन ने बताया कि स्वामी विवेकानन्द सार्द्धशती समारोह समिति ने वार्षिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में आज सूर्यनमस्कार यज्ञ का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि स्वस्थ रहने के लिए सूर्यनमस्कार जरूरी है। इस प्रकार के कार्यक्रम देश और समाज को जोड़ते हैं और समरसता का विस्तार होता है। पूरे विश्व में स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म का डंका बजाया था। उन्होंने समाज के सभी बन्धुओं का आह्वान करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द से जुड़े सभी कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए। काशी स्थिति महाराजा बनारस महिला महाविद्यालय रामनगर में स्वयं महारानी अनामिका कुवर उपस्थित होकर सूर्यनमस्कार के लिए प्रेरित किया । इस अवसर पर भूतपूर्व मुख्य चिकित्साधिकारी डाॅ. नरेन्द्र गुप्ता ने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि सूर्यनमस्कार से तनाव दूर होगा और युवाओ मे आयु, बुद्वि, बल आद्रि गुणो का विकास होगा। राधाकिशोरी राजकीय बालिका इण्टर कालेज रामनगर में बालिकाओं ने सूर्य नमस्कार किया। आचार्य श्रीराम चतुर्वेदी डिग्री कालेज डुमरी रामनगर में युवाओं ने सामूहिक सूर्य नमस्कार कर दर्शको को रोमांचित कर दिया। दर्शकों ने हजारों कि संख्या मे विद्यार्थीयो के एक साथ, एक लय में सूर्यनमस्कार करते हुए दृश्य को देख अभीभूत होकर कहा कि आज युवाओं को सूर्यनमस्कार की जरूरत है। सभी स्थानों पर वक्ताओं ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही। स्वामी विवेकानन्द व भारतमाता के चित्रो पर पुष्पांजली, दीप प्रज्ज्वल के बाद मुख्य वक्ता का उद्बोधन, सूर्यनमस्कार का प्रदर्शन, अध्यक्षीय आर्शीवचन, ध्वजावतरण, आभार प्रकटीकरण, प्रसाद वितरण व शान्ति मन्त्र के साथ कार्यक्रम का समारोप हुआ। निवेदक: स्वामी विवेकानन्द सार्धशती आयोजन समिति, 63 माधव मार्केट लंका, वाराणसी

Saturday 12 January 2013

स्वामी विवेकानन्द जयंती के अवसर पर कौशाम्बी में भव्य शोभायात्रा

भव्य शोभायात्रा से विवेकानन्दमय बना काशी महानगर

वाराणसी, 12 जनवरी। ‘‘ उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको’’ का सिंहनाद करने वाले राष्ट्रभक्त्त, युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंदजी के जन्म के 150 वें जयन्ती वर्ष का शुभारम्भ 12 जनवरी 2013 शनिवार को काशी के 23 नगरों में झांकिया निकालकर में मनाया गया। स्वामी विवेकानन्द सार्द्धशती समारोह समिति काशी महानगर ने सार्द्धशती समारोह के संपूर्ण वार्षिक कार्यक्रमों (12 जनवरी 2013 से 12 जनवरी 2014 ) का श्री गणेश आज काशी में स्वामी विवेकानन्द की जयंती के उपलक्ष्य में भव्य शोभायात्रा के द्वारा किया। शोभायात्रा कि भव्यता व महत्ता का देखते हुए इसे 23 स्थानो से प्रारम्भ किया गया। इस अवसर पर स्वामी विवेकानन्द सार्धशती समारोह के संयोजक ने बताया कि (काशी महानगर उत्तर) स्वामी विवेकानन्द ने कभी जाति, धर्म, समुदाय के आधार पर मनुष्य में भेद नहीं किया। स्वामी जी के विचारों से अवगत करवाते हुए उन्होंने बताया कि आपमें शक्ति होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि कमजोर राष्ट्र कभी सर उठाकर नहीं खड़ा हो सकता इसलिए दुनिया के सामने अपने को सक्षम बनाने के लिए हमें शक्ति अर्जित करनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि हम भटकी हुए दुनिया के साथ खड़े होने के लिए नहीं हैं अपितु भटकी हुए दुनिया को सही मार्ग देने के लिए बने हैं। उन्होंने बताया आज की सभी समस्याओं का हल व्यक्ति के संकल्प पर टिका है, बुराइयों को समाप्त करने की पहल अपने परिवार से करनी है, ऐसा संकल्प सभी लेते हैं तो कोई समस्या नहीं रहेगी। उन्होंने बताया कि विवेकानन्द जी की 150वीं वर्षगांठ का यह वर्ष देश के उत्थान तथा दुनिया को दिशा देने का महत्वपूर्ण वर्ष होगा तथा भारत जागो विश्व जगाओ के उदगोष को सार्थक करेगा।
शोभायात्राएॅ- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में विशाल युवा शोभायात्रा के माघ्यम से धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संकाय के मैदान पर अपराह्न 3 बजे शुरू हुआ। इसके पश्चात सिंहद्वार होते हुए सन्त रविदास गेट होते हुए सिंहद्वार पर समाप्त हुआ। शोभायात्रा में युवाओं ने माथे पर केशरिया साफा बांधकर गगनभेदी नारे लगाते हुए शहर का वातावरण विवेकानन्दमय कर दिया। इस अवसर पर हरिशंकर जी ने स्वामी विवेकान्द के वेदान्त दर्शन का सन्देश दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सरसुन्दरलाल अस्पताल के डाॅ. गांगुलीजी ने कहा कि स्वामी जी के कर्मयोग को चरित्र में आत्मसात करने की जरूरत है। इस यात्रा में प्रमुख रूप से डाॅ. विजेन्द्र जी, पवन कुमार, सुनील कुमार, प्रवीण राय, अनुराग जी, शिवम गुप्त, आलोक रंजन सिंह, प्रणव जी, सौरभ तिवारी, सुनील शुक्ला, विपुलेन्द्र प्रताप आदि उपस्थित थे। निवेदिता शिक्षा सदन से भी शोभा यात्रा का प्रारम्भ हुआ। यह यात्रा पाणिनी कन्या महाविद्यालय, सीलनगर, मड़ुवाडीह, श्रीरामनगर कालोनी होते हुए निवेदिता में समाप्त हुआ। शोभायात्रा में सैकड़ो की संख्या में माताएं बहिनें, बालक-बालिकाएं व विभिन्न समाजों के गणमान्य नागरिक सम्मिलित हुए । सम्पूर्ण यात्रा का मार्ग मंें विभिन्न समाजों द्वारा स्वागत अभिनन्दन किया गया। माधवपार्क कालोनी लंका से भी शोभायात्रा निकाली गयी। इस अवसर पर कार्यक्रम के नगर संयोजक शशि सिंह, सह सयोजक रामाज्ञा पाण्डेय, विनोद सिंह राठौर, डाॅ. प्रभाकर द्विवेदी, संजीव चैरसियां, , डाॅ. बच्चा लाल, मणि जी, प्रवीण सिंह, राजेन्द्र प्रसाद ओझा, मिठाई लाल जी, डाॅ. अनिल सिंह, सुधीर यादव, प्रमोद जी, अभिशेक प्रताप सिंह, धैर्यवर्धन सिंह, रजनीश सिंह आदि उपस्थित थे। यात्रा के अन्त में सुप्रसिद्ध चिकित्सक डाॅ. विश्वास वर्मा एवं मधुसूदन पाण्डेय ने स्वामी जी के जीवन पर प्रकाश डाला। केशव नगर, चितईपुर से यह शोभायात्रा प्रारम्भ होकर अवलेशपुर, वृन्दावन, सुसुवाही, महामनापुरी, आदित्यनगर होते हुए पुनः चितईपुर जाकर समाप्त हुई। शोभायात्रा का संयोजन श्री रामनारायण जी ने किया। यात्रा में प्रमुख रूप से प्रो. उदय प्रताप, डाॅ. कमलेश, गोपाल जी, रामलाल जी एवं अमरजीत सिंह आदि उपस्थित थे। तिलक नगर की शोभायात्रा शहीद पार्क, सिगरा, शास्त्री नगर, कमलानगर, भारतमाता मन्दिर होते हुए शहीद पार्क में समाप्त हुई। शोभायात्रा के अग्रसर स्वामी विवेकानन्द के स्वरूप में 5 लोग थे । सम्पूर्ण यात्रा का मार्ग मंें विभिन्न समाजों द्वारा स्वागत अभिनन्दन किया गया। प्रस्तुति: लोकनाथ, 63 माधव मार्केट लंका, वाराणसी- 221005 स्वामी विवेकानन्द सार्धशती काशी महानगर

कालजयी महानायक स्वामी विवेकानंद

गिरीश पंकज स्वामी विवेकानंद के जीवन की शुरुआत देखें तो अद्भुत रोमांच होता है। कैसे एक संघर्षशील नवयुवक धीरे-धीरे महागाथा में तब्दील होता चला जाता है। उनका जीवन हम सबके लिए प्रेरणास्पद है। अपनी महान मेधा के बल पर दुनिया में भारत की आध्यात्मिक पहचान बनाने में सफल हुए स्वामी विवेकानंद ने सौ साल पहले जो चमत्कार कर दिखाया, वह आज दुर्लभ है। यह ठीक है कि तकनीकी या आर्थिक क्षेत्र में कुछ उपलब्धियाँ अर्जित करके कुछ लोगों ने यश और धन अर्जित किया है, मगर वह उनका व्यक्तिगत लाभ है, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने व्यक्तिगत लाभ अर्जित नहीं किया, वरन देश की साख बनाने में अपना योगदान किया। उनके कारण पूरी दुनिया भारत की ओर निहारने लगी। वेद-पुराणों के हवाले से उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय चिंतन की नूतन व्याख्या की। ‘लेडीज एंड जेंटलमेन’ कहने की परम्परा वाले देश को उन्होंने यह ज्ञान पहली बार दिया कि बहनों और भाइयों जैसा आत्मीय संबोधन भी दिया जा सकता है। उन्होंने दुनिया को मनुष्य या परिवार का एक सदस्य समझने का संस्कार दिया क्योंकि स्वामी विवेकानंद को यही ज्ञान मिला था। यानी वसुधैव कुटुम्बकम का ज्ञान । स्वामी विवेकानंद की जीवन-यात्रा की शुरुआत देखें तो उनका जीवन भी मध्यमवर्गीय परेशानियों से भरा रहा। पढ़ाई में वे मेधावी थे तो खेल-कूद में भी माहिर थे। कुश्ती में निपुण थे। कुशल तैराक थे। तलवार चलाने में माहिर थे। नाटक और संगीत कला में रुचि थी। इसीलिए उन्होंने एक नाटक कम्पनी भी बनाई थी। उनका शरीर भी सुगठित था। किशोरावस्था में ही उन्होंने एक व्यायाम शाला बनाई थी। इसलिए आज जब हम युवा पीढ़ी के सामने कोई आदर्श प्रस्तुत करने की बात हो तो सबसे पहले कम से कम मुझे तो स्वामी विवेकानंद का नाम ही याद आता है। दुर्भाग्य से नई पीढ़ी के सामने नायक के रूप में फिल्मी कलाकार ही आ कर खड़े हो जाते हैं। इन कलाकारों में ज्यादातर का जीवन अनेक लंपटताओं से भरा रहता है। उनकी हरकतें देख कर युवक समझते हैं कि यही सब हमें ग्रहण करना है। फटी चिथड़ी जींस फुलपैंट भी अब फैशन है. यह विवेकहीनता का चरम है. आज समाज में जो पतन नजर आता है, उसका असली कारण सिनेमा और टीवी के अश्लील कार्यक्रम भी है। इसलिए नई पीढ़ी का ध्यान इन सबसे हटाने के लिए कुछ न कुछ जतन करना जरूरी है। सिनेमा के नकली नायक हमारे आदर्श बिल्कुल नहीं हो सकते । हमारे सामने महान नायकों की लम्बी फेहरिश्त मौजूद है। इनमें स्वामी विवेकानंद अग्रिम पंक्ति में हैं। उन्होंने किसी पटकथा के सहारे अभिनय नहीं किया और न संवाद बोले। उन्होंने तो अपने महान ग्रंथों का अवगाहन करके जीवन जीने की नई वैज्ञानिक-आध्यात्मिक-दृष्टि अर्जित की। स्वामी जी युवकों से कहते थे, कि ”अपने पुट्ठे मजबूत करने में जुट जाओ। वैराग्य-वृत्ति वालों के लिए त्याग-तपस्या उचित है लेकिन कर्मयोग के सेनानियों को चाहिए-विकसित शरीर, लौह मांस-पेशियाँ और इस्पात के स्नायु।” तरुण मित्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने हमेशा यही संदेश दिया कि ”शक्तिशाली बनो। मेरी तुम्हें यही सलाह है। तुम गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल द्वारा ही स्वर्ग के अधिक समीप पहुँच सकोगे। तुम्हारे स्नायु और माँसपेशियाँ अधिक मजबूत होने पर तुम गीता अच्छी तरह समझ सकोगे। तुम अपने शरीर में शक्तिशाली रक्त प्रवाहित होने पर श्रीकृष्ण के तेजस्वी गुणों और उनकी अपार शक्ति को हृदयंगम कर पाओगे।” स्वामी विवेकानंद यह नहीं कहते थे, कि पूजा-पाठ करो, भगवत-भजन करो या अध्यात्म में डूब जाओ। वे अपने समकाल से काफी आगे की सोच वाले थे। वे दकियानूस नहीं थे। वैज्ञानिक दृष्टिसम्पन्न युवक थे। एक युवक जब एक बार स्वामी जी से मिला तो उसने कहा कि मैं घर के सारे दरवाजे-खिड़कियाँ बंद करके आँखें मींच लेता हूँ। पर ध्यान ही नहीं लगाता। मन को शांति ही नहीं मिलती। तब स्वामी जी ने मुसकराते हुए कहा था, कि ”तुम सबसे पहले दरवाजे-खिड़कियाँ खोल दो और अपनी खुली आँखों से बाहर की दुनिया देखो। तुम्हें सैकड़ों गरीब-असहाय लोग दिखाई देंगे। तुम उनकी सेवा करो। इससे तुम्हें मानसिक शांति मिलेगी। वे गरीबों की सेवा करने के लिए सबको प्रेरित करते थे। भूखे को खाना खिलाना, बीमार को दवाई देना और जो अनपढ़ हैं उन्हें ज्ञान देना। यही है सच्चा अध्यात्म। इसी से मिलती है मन की शांति।” स्वामी विवेकानंद का सौभाग्य था, कि उन्हें अपने माता-पिता से अच्छे संस्कार मिले। सत्य निष्ठा की सीख मिली। बेहतर गुरू मिले। रामकृष्ण परमहंस जैसे सच्चे मार्गदर्शक मिले। पिता विश्वनाथदत्त जी के असामयिक निधन के बाद घर चलाने के लिए नरेंद्र नाथ को नौकरी भी करनी पड़ी। यानी उनके जीवन में सघर्ष का यह दौर भी आया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने जीवन को कर्मयोग के साथ-साथ आध्यात्मिकता से भी अनुप्राणित करते रहे। और एक समय आया जब वे विदेश जाने से पहले स्वामी विवेकानंद में रूपांतरित हुए और पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति की पहचान के रूप में आलोकित हो गए। स्वामी जी के जीवन एवं विचारों को पढ़ते हुए मैंने यह महसूस किया कि उन्होंने कहीं भी साम्प्रदायिकता को या नफरत को बढ़ाने वाले संकुचित विचारों का प्रचार-प्रसार नहीं किया। उन्हाने विदेश में प्रवचन देते हुए कहा था, कि ”हमें मानवता को वहाँ ले जाना चाहते हैं, जहाँ न वेद है, न बाइबिल है और न कुरान। लेकिन यह काम वेद, बाइबिल और कुरान के समन्वय द्वारा किया जाना है। मानवता को सीख देनी है कि सभी धर्म उस अद्वितीय धर्म की ही विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं, जो एकत्व है। सभी को छूट है कि वे जो मार्ग अनुकूल लगे उसको चुन लें।” स्वामी जी की सबसे बड़ी विशेषता यही है, कि वे ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’ कहने के बावजूद वैसे हिंदू बिल्कुल नहीं थे, जैसे आजकल के नजर आते हैं। ये लोग अलगाव फैलाने का काम करते हैं। दंगे भड़काने में सहायक होते हैं। हमें बनना है तो स्वामी विवेकानंद जैसा हिंदू बनना है। शिकागों में व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा था, कि ”मैं अभी तक के सभी धर्मों को स्वीकार करता हूँ। और उन सबकी पूजा करता हूँ। मैं उनमें से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के साथ ईश्वर की उपासना करता हूँ। वे स्वयं चाहे किसी रूप में उपासना करते हों। मैं मुसलमानों के मस्जिद जाऊँगा। मैं ईसाइयों के गिरजा में क्रास के सामने घुटने टेक कर प्रार्थना करूँगा: मैं बौद्ध मंदिरों में जा कर बुद्ध और उनकी शिक्षा की शरण लूँगा। मैं वन में जा कर हिंदुओं के साथ ध्यान करूँगा जो हृदयस्थ ज्योतिस्वरूप परमात्मा को प्रत्यक्ष करने में लगे हुए हैं।” सच्चा मनुष्य धर्मस्थलों में भेद नहीं करता। मुझे याद आती है गोस्वामी तुलसीदास की पंक्तियाँ कि ‘माँग के खाइबो और मसीद में सोइबो’। महान ग्रंथ रामचरित मानस के रचयिता ने समाज को जागरण का पथ दिखाने के साथ यह भी साबित कर दिया कि मुझे कट्टर हिंदू समझने की भूल न करना। कोई भी सच्चा ज्ञानी साम्प्रदायिक बातें नहीं करेगा। स्वामी जी का समूचा जीवन-दर्शन देखें तो वे कहीं भी यह नहीं कहते कि हिंदुओं, तुम अपनी ताकत पहचानो और जो विधर्मी हैं, उनका नाश कर दो। या फिर यह भी नहीं कहते कि यह देश केवल तुम्हारा है। जो गैर हिंदू हैं उन्हें यहाँ रहने का हक नहीं है। उल्टे स्वामी जी समूची उदारता के साथ बार-बार यही कहते हैं, कि च्मैं भारतीय हूँ और प्रत्येक भारतीय मेरा भाई है।..मनुष्य। केवल मनुष्य ही हमें चाहिए। समाज में व्याप्त छुआछूत की भावना को देख कर वे आहत होते थे इसीलिए उन्होंने कहा था, ”भूल कर भी किसी को हीन मत मानो। चाहे वह कितना ही अज्ञानी, निर्धन अथवा अशिक्षित क्यों न हो और उसकी वृत्ति भंगी की ही क्यों न हो क्योंकि हमारी-तुम्हारी तरह वे सब भी हाड़-माँस के पुतले हैं और हमारे बंधु-बांधव हैं।” कुल मिला कर देखें तो स्वामी विवेकानंद अपने आप में समूची पाठशाला हैं। यहाँ आने वाला गंभीर विद्यार्थी जीवन में कभी फेल हो ही नहीं सकता। हर हालत में पास ही होगा। बशर्ते वह इनकी पाठशाला में भरती तो होना चाहे. स्वामी जी का जीवन, उनका चिंतन हमें सौ साल बाद भी ऊर्जा से, जोश से भर देता है। वे अपने जीवन के चालीस साल भी पूर्ण नहीं कर सके थे। चालीस साल में उन्होंने दुनिया को जो ज्ञान दिया, जो दृष्टि दी, वह हमें मार्ग दिखाने के लिए पर्याप्त है। सिखों के दसवें गुरू गुरू गोबिंदसिंघ जी भी चालीस साल तक ही जीए मगर उन्होंने भी अपने जीवन को एक मिसाल बना दिया था। ये सब उदाहरण हैं जिन्हें देख कर लगता है कि प्रतिभा के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं रहता। ऐसे अनेक उदाहरण है जो हमें बताते हैं, कि विचारों का अमृत-पान कराने में युवा पीढ़ी का ही ज्यादा अवदान है। गाँधी जी भले ही अस्सी साल के आसपास हमारे बीच से गए लेकिन उनका युवाकाल में ही अपने कर्म से दक्षिण अफ्रीका और और बाद में भारत आ कर सामाजिक जागरण का सूत्रपात कर दिया था। चालीस साल की उम्र में लिखी गई उनकी कृति ‘हिंद स्वराज’ आज भी ताजा लगती है। इसलिए यह मान लेना कि युवा काल मौजमस्ती का काल होता है, बहुत बड़ी नादानी है। मूर्खतापूर्ण सोच है। युवा पीढ़ी को गुमराह करने की साजिश है। स्वामी विवेकानंद के जीवन-वृत्त को देखें तो हम कह सकते हैं कि एक युवक अगर ठान ले तो वह अपने जीवन को नरेंद्रनाथ से विवेकानंद में तब्दील कर सकता है। इसलिए आज की युवा पीढ़ी को समझाया जाना चाहिए, या उसे खुद समझना चाहिए कि उसके नायक रुपहले पर्दें के नकली हीरों नहीं हो सकते। उसे नायक तलाश करना है तो पीछे मुड़ कर देखना होगा। अतीत के पन्ने खंगालने होंगे। इतिहास से गुजरना होगा। भारत को भारत बनाने में युवा पीढ़ी का ही महती योगदान रहा है। आश्चर्य होता है,कि सौ साल पहले स्वामी विवेकानंद ने जैसा भारत देखा था, आज अनेक मोर्चो पर भारत की वैसी की वैसी हालत बनी हुई है। इसलिए लगता है, कि विवेकानंद के सपने को पूरा करने का दायित्व हम सब का है। युवा पीढ़ी का है। उन्होंने एक बार कहीं कहा था, कि ”ओ माँ, जब मेरी मातृभूमि गरीबी में डूब रही हो तो मुझे नाम और यश की चिंता क्यों हो? हम निर्धन भारतीयों के लिए यह कितने दु:ख की बात है, कि जहाँ लाखों लोग मुट्ठी भर चावल के अभाव में मर रहे हों, वहाँ हम अपने सुख-साधनों के लिए लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं। भारतीय जनता का उद्धार कौन करेगा? कौन उनके लिए अन्न जुटाएगा? मुझे राह दिखाओ माँ, कि मैं कैसे उनकी सहायता करूँ?” स्वामी विवेकानंद आज अगर सशरीर मौजूद होते तो वे अपनी यही वेदना फिर दुहराते हुए यही बात फिर कहते। आज भी देश में लाखों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अशिक्षा, अज्ञानता से ग्रस्त लोगों की संख्या भी करोड़ों में है। धर्म-अध्यात्म अब भरपेट लोगों का शगल बन गया है। एक पाखंड चारों तरफ पसरा हुआ है कि लोग बड़े धार्मिक हैं। दरिद्रनारायण के उन्नयन पर कोई खर्च नहीं करना चाहता लेकिन धर्मस्थल या अपनी जाति या समाज के भवन बनाने में लोगों की बड़ी दिलचस्पी देखी जा रही है। ऐसे समय में निर्धन वर्ग से नैतिकता या धर्म-कर्म की बातें करना बेईमानी है। छल है। स्वामी विवेकानंद जी ने गरीबी के मर्म को समझा था, इसीलिए वे कहते थे, ”पहले रोटी, फिर धर्म। जब लोग भूखों मर रहे हों, तब उनमें धर्म की खोज करना व्यर्थ है। भूख की ज्वाला किसी भी मतवाद से शांत नहीं हो सकती। जब तक तुम्हारे पास संवेदनशील हृदय नही, जब तक तुम गरीबों के लिए तड़प नहीं सकते, जब तक तुम उन्हें अपने शरीर का अंग नहीं समझते, जब तक तुम अनुभव नहीं करते कि तुम और सब दरिद्र और धनी, संत और पापी-उसी एक असीम पूर्ण के -जिसे तुम ब्रह्म कहते हो, अंश हैं, तब तक तुम्हारी धर्म-चर्चा व्यर्थ है।” आज इस दौर में बदहाली में कोई कमी नहीं आई है। ये और बात है कि हमारा समाज इंटरनेट के युग में प्रविष्ट कर चुका है, गरीब से गरीब व्यक्ति के पास भी मोबाइल हो सकता है, लेकिन उसकी बदहाली कम नहीं हुई है। बेरोजगारी, भूख, वर्गभेद, छुआछूत, अशिक्षा, अंधविश्वास, सामंती मनोवृत्ति, राष्ट्रविरोधी प्रवृत्ति आदि अनेक बुराइयों से ग्रस्त भारतीय समाजको एक बार फिर स्वामी विवेकानंद के चिंतनों से रूबरू कराने का समय आ गया है। आज की अधिकांश तरुणाई फिल्मी हीरो-हीराइनों को अपना रोल मॉडल बनाने की कोशिश कर रही है। जबकि हमारे रोल मॉडल स्वामी विवेकानंद समेत अनेक युवा क्रांतिकारी, विचारक ही युग प्रवर्तक हो सकते हैं इसलिए हमें अतीत की ओर निहारते हुए ही भविष्य का सफर तय करना होगा।

Tuesday 25 December 2012

काशी के 23 नगरों में स्वामी विवेकानन्द सार्धशती ‘संकल्प दिवस’ का शुभारम्भ

- आज 25 दिसम्बर को काशी महानगर के 23 नगरों में संकल्प दिवस मनाया गया। - 12 जनवरी 2013 को समारोह का भव्य उद्घाटन एवं शोभायात्राएँ - 18 फरवरी को ‘सूर्य नमस्कार महायज्ञ’ - 11 सितम्बर 2013 को ‘भारत जागो दौड़’ - 12 जनवरी 2014 को समारोह का समापन होगा। वाराणसी, 25 दिसम्बर। 25 दिसम्बर 1892 भारत परिक्रमा करते स्वामी विवेकानन्द कन्याकुमारी के नजदीक दक्षिण छोर पर पहुंचे। सामने अथाह सागर मंे देविपादम शिलापर जाकर ध्यानस्थ बैठने की अतितीव्र इच्छा हुई। समुद्र तैरकर पार कर शिला पर पहुंचे गये। 25, 26, 27 दिसम्बर (1892) को भारत की ओर मुंह करके ध्यानावस्था में बैठ गए। भारतमाता के उत्थान पर ही वे ध्यानमग्न रहे। इस प्रेरणादाई दिन 25 दिसम्बर को काशी महानगर के 23 नगरों सहित सम्पूर्ण देश में अनेक स्थानों पर संकल्प दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति समाज के उत्थान के लिए मैं क्या कर सकता हूॅ, का संकल्प ले रहे हैं। संकल्प दिवस का कार्यक्रम शहर के प्रमुख नगरों जैसे विश्व संवाद केन्द्र लंका, ग्लोरियस एकेडमी, निवेदिता शिक्षा सदन महमूरगंज, डी.एल.डब्ब्लू, सिगरा, गोदौलिया आदि स्थानों पर सम्पन्न हुआ। कुल 23 नगरों में लगभग 5000 लोग संकल्प लिया। ग्लोरियस एकेडमी में आयोजित कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डाॅ. शुकदेव त्रिपाठी, काशी महानगर दक्षिण के विद्यार्थी आयाम के प्रमुख प्रवीण कुमार राय, गंगा नगर के संयोजक शशि सिंह, सह संयोजक रामाज्ञा पाण्डेय, विनोद सिंह राठौर, डाॅ. प्रभाकर द्विवेदी, संतोष पाठक, नगर प्रचार-प्रसार प्रमुख धैर्यवर्धन सिंह, संजीव चैरसियाॅं, इसके अलावा विभाग प्रचारक रत्नाकर जी, राजेन्द्र ओझा, डाॅ. बच्चा लाल अनिल सिंह, सुधीरयादव, सुजीत सिंह, सौरभ जी श्रीश तिवारी, डाॅ. अनिल कुमार सिंह, डाॅ. कविन्द्र तिवारी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। स्वामी विवेकानन्द सार्धशती के प्रान्त संयोजक डाॅ. रामदुलार सिंह ने बताया कि स्वामी विवेकानन्दजी की 150 वीं जयंती आगामी 12 जनवरी, 2013 से 12 जनवरी, 2014 तक वर्षभर स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति के माध्यम से मनाया जाएगा। स्वामीजी शक्तिदायी संदेशों को इस निमित्त अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने का बड़ा लक्ष्य समिति ने रखा है । ‘भारत जागो - विश्व जगाओ’ इस संकल्पना पर आधारित अनेक कार्यक्रम तथा उपक्रमों का वर्षभर आयोजन किया जाएगा । स्वामी विवेकानन्दजी की यह जयंती केवल भारत के साथ ही विश्वभर मनाया जा रहा है । देश के सभी राज्यों में इस समिति के अंतर्गत प्रान्त समितियों का गठन किया गया है । सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक, आध्यात्मिक गुरु, स्वामी विवेकानन्द के विचारों को प्रसारित करनेवाले तथा देश के अनेक संस्था एवं समिति में सम्मिलित हो रहे हैं । 12 जनवरी, 2013 स्वामी विवेकानन्द जयन्ती के अवसर पर समिति द्वारा काशी के सभी प्रमुख शहरों तथा गांवों में भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी । 18 फरवरी, 2013 को काशी प्रान्त के महाविद्यालयीन छात्र-छात्राओं द्वारा सामूहिक सूर्यनमस्कार किया जाएगा । इस आयोजन में 500 से अधिक स्थानों पर सामूहिक सूर्यनमस्कार सम्पन्न होंगे। 11 सितम्बर, 2013 को स्वामी विवेकानन्दजी के शिकागो में दिए गए विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण की स्मृति में भारत के युवाओं द्वारा ‘भारत जागो दौड़ का बृहद कार्यक्रम सम्पन्न होगा । स्वामी विवेकानन्द के 150 वे जयन्ती वर्ष में समस्त कार्यक्रम समाज में सम्पूर्ण वर्ग को जोडते हुए पांच आयामों द्वारा उत्सव रूप में मनायें जायेंगें। 1. युवा शक्ति (युवाओ का आयाम) - युवाओं के लिए आयाम विशाल युवा शक्ति (मुख्यतः 40 वर्ष से कम आयु के विद्यार्थी एवं अविद्यार्थी युवाओं पर केंद्रित) को जाग्रत कर सही दिशा देने के लिए सेवा, स्वाध्याय, सुरक्षा और स्वावलंबन । इस दिशा में युवा शक्ति को जागृत करनेवाले युवा सम्मेलन तथा युवा केन्द्रीत विभिन्न प्रतियोगिताओं आदि कार्यक्रमों का आयोजन होगा। 2. संवर्धिनी आयाम (मातृशक्तियों का आयाम) - महिलाओं के लिए आयाम राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बघने के लिए स्त्री क्षमता के संवर्धन और सम्मान के लिए शक्ति, संस्कार, स्वाध्याय और सेवा । 3. ग्रामायण आयाम (ग्रामीण जनों का आयाम) - ग्रामीणों के लिए आयाम देश के ग्राम आधारित विकास में ग्रामीणों के योगदान का सम्मान और उनके सम्पूर्ण विकास में सहयोग करने के लिए समरसता, सत्संग और सेवा । 4. अस्मिता आयाम (जनजातियों का आयाम) - जनजाति वर्ग (पर्वतीय एवं वनवासी क्षेत्र के लोगों के लिए आयाम) भारत की सभी जनजातियों की लोक आस्था और संस्कृति के सम्मान, संरक्षण, संवर्धन, उन्नति और अनुपालन के लिए सेवा, संस्कार, समरसता और सजगता । 5. प्रबुद्ध भारत आयाम - प्रबु़़़द्ध भारत, सामाजिक व वैचारिक नेतृत्व का आयाम के रूप में होगें। इन सभी आयामों की दृष्टि से विविध व्याख्यान, सेमिनार आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा । इन सभी प्रकार के उपक्रमों तथा कार्यक्रमों का आयोजन काशी महानगर में बहुत ही भव्यता से किया जाएगा । काशी प्रान्त समिति के संयोजक डाॅ. रामदुलार सिंह ने इस महान अवसर पर नगरवासियों को भारी संख्या में गहन आत्मियता से स्वामीजी के सार्ध शती में सहभागी होने का आह्वान किया है । प्रस्तुति: लोकनाथ, विष्व संवाद केन्द्र 63 माधवकुंज, माधव मार्केट, लंका, वाराणसी-221005